भँवरे का बदला |
एक बार एक चील एक खरगोश के पीछे पड़ी थी। खरगोश भँवरे के पास भागा। भँवरे ने चील से विनती की वह खरगोश को न पकडे। चील नहीं मानी।, वह शिकार पर झपटी और उसे लेकर उड़ गयी। भँवरे खरगोश की रक्षा न कर स्का।
भँवरे को गुस्सा आ गया। वह उड़ता हुआ चील के घोंसले में गया और उसके सभी अंडे को एक -एक कर गिरा दिया। अंडे फूट गए। अगले वर्ष भी ऐसा ही हुआ। ऐसा कई वर्षों तक चलता रहा। चील ने देवता से प्रार्थना की कि वे उसके अण्डों गोद में रखे ताकि उसे अंडे सुरक्षित रह सके। देवता ने बात मान ली।
किन्तु भंवरा वहां भी पहुंच गया। देवता के कानों के पास भिनभिनाने लगा। उस भगाने के लिए देवता उठा तभी अंडे गिर और फूट गए। देवता को कारण का पता था , किन्तु चील के अण्डों की सुरक्षा भी आवश्यक थी। तबसे उन्होंने व्यवस्था बनायीं की जिस मौसम में चील के अंडे घोंसले में होंगे ,भंवरा सोया रहेगा। यह आज भी सोया रहता है।
शिक्षा :-कमजोर भी अपने ढंग से बदला लेने में सक्षम है।
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