स्वार्थ और लालच
एक लालची किसान से कहा गया कि वह दिन में जितनी जमीन पर चलेगा, वह उसकी हो जाएगी, पर शर्त यह है कि सूरज डूबने तक वह शुरू की जगह पर वापिस लौट आये. जायदा से जायदा जमीन पाने क लिए वह किसान दूसरे दिन सूरज निकलने से पहले ही निकल पड़ा. वह काफी तेजी से चल रहा था क्योंकि वह जायदा से जायदा जमीन हासिल करना चाहता था. थकने क बावजूद वह पूरी दोपहर चलता ही रहा, क्योंकि वह ज़िंदगी में दौलत कमाने के लिए हासिल हुए उस मौके को गवाना नहीं चाहता था.दिन ढलते वक़्त उस को शर्त याद आई कि उसे सूरज डूबने से पहले शुरआत की जगह पर पहुंचना है. अपने लालच की वजह से वह उस जगह से काफी दूर निकल आया . वह वापिस लौट पड़ा. सूरज डूबने का वक़्त ज्यों-ज्यों करीब आता जा रहा था, वह उतनी ही तेजी से दौड़ता रहा. नतीजा यह हुआ कि सूरज डूबता-डूबता वह शुरुआत वाली जगह पर पहुँच तो गया,पर उसका दम निकल गया.उसको दफना दिया गया, और उसे दफ़न करने क लिए जमीन क बस एक छोटे से टुकड़े की ही जरूरत पड़ी.
इस कहानी में काफी सच्चाई और सबक छिपा है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसान अमीर था या गरीब था. किसी भी लालची आदमी का ऐसा ही हश्र होता है
स्वार्थी नजरिया रखने वाले लोगों को संगठनों को पनपने का कोई हक़ नहीं है.वे दूसरों क हितों की परवाह किये बिना आगे बढ़ने की सोचते है. लालची आदमी हमेश और अध्कि पाने की चाह रखता है. जरूरतें की पूरी की जा सकती है पर लालच नही. यह मन का कैंसर है. यह रिश्तों को नष्ट कर देता है.
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