बहिष्कार
उन दिनों देश में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार की लहर थी। जगह -जगह विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गयी। घर में बडों की देखा -देखी उस छोटी -सी बच्ची ने भी विदेशी वस्त्रों को पहनना छोड़ दिया।
उन दिनों देश में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार की लहर थी। जगह -जगह विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गयी। घर में बडों की देखा -देखी उस छोटी -सी बच्ची ने भी विदेशी वस्त्रों को पहनना छोड़ दिया।
घर में कोई हमउम्र बच्चा तो था नहीं ,सो वह एक प्यारी सी गुड़िया को ही अपना दोस्त मानती और उसे सदा अपने पास रखती।
एक दिन उसके रिश्तेदार ने टोक दिया , "जब तू विदेशी फ्राक नहीं पहनती ,तो फिर विदेशी गुड़िया को अपने पास क्यों रखती हो?"
बात तो हंसी मजाक में कही गयी थी ,पर बच्ची को बात लग गयी। उसने अपनी प्यारी गुड़िया को उठाया और छत पर जाकर उसे जला दिया। उसे ऐसा करें में दुःख तो हुआ ,क्योंकि एकमात्र गुड़िया ही सुकि सखी -साथी थी ,फिर भी उसे संतोष था की वह देश प्रेम की राह पर बढ़ रही है।
यह बच्ची और कोई नहीं जवाहरलाल नेहरू की बेटी इंदिरा गाँधी थी।
कसम टूट गयी
बचपन में हुई किसी घटना के कारण इंदिरा गाँधी ने कभी भी भाषण न देने की कसम खायी थी ,इसलिए उन्होंने दक्षिण-अफ्रीका पहुंचने पर वहां के पदाधिकारियों को भाषण देने से मना कर दिया ,"नहीं, नहीं मैं एक शब्द भी नहीं कहूंगी और ऐसी शर्त पर सभा में आउंगी। "
बचपन में हुई किसी घटना के कारण इंदिरा गाँधी ने कभी भी भाषण न देने की कसम खायी थी ,इसलिए उन्होंने दक्षिण-अफ्रीका पहुंचने पर वहां के पदाधिकारियों को भाषण देने से मना कर दिया ,"नहीं, नहीं मैं एक शब्द भी नहीं कहूंगी और ऐसी शर्त पर सभा में आउंगी। "
अधिकारी इंदिरा जी के अफ्रीका पहुंचने पर उनका स्वागत और अभिनन्दन करना चाहते थे। इंदिरा जी का ऐसा रुख देख कर वे सब सकते में आ गए। उन्होंने हामी भरते हुए कहा ,ठीक है ,आप मंच पर बैठे रहिएगा ,हम किसी तरह लोगों को समझा देंगे की आप क्यों नहीं भाषण देना चाहती है।
स्वागत सभा शाम को ४ बजे थी ,बाकि सारा समय वे अफ्रीका के रेलकर्मियों की बस्ती में घूमती रही। कामगारों की दुर्दशा देख कर वे बेचैन हो उठी।
शाम को स्वागत सभा में अधिकारीयों ने इंदिरा जी के भाषण न देने की घोषणा की ,तो उनका धैर्य जवाब दे गया। उन्होंने टेबल पर घूंसा पटकते हुए कहा ,"नहीं ,मई कुछ बोलना चाहती हूँ। "
अधिकारीयों के लिए दूसरा अचरज था। उसके बाद माइक्रोफोन पर ,जोश में ,वो क्या बोली ,यह उन्हें भी याद नहीं रहा। लेकिन भाषण के बाद जिस प्रकार उन्हें घेर लिया गया था और अफ्रीकी महिलाओं ने जिस तरह से उनके साथ हाथ मिलाया और उनका हाथ चुम रही थी ,उससे जाहिर ho रहा था की उनके दर्द को इंदिरा जी ने शब्दों में अच्छी तरह अभिव्यक्त किया था। इसके बाद तो भाषणों का सिलसला ऐसा चला की वह उनके जीवन की अंतिम सांसों तक चलता रहा।
ऐसे और भी अच्छे- अच्छे आर्टिकल और कहानियां पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग
https://successmantralife.blogspot.in/को LIKE और SHARE जरूर करें दोस्तों.
0 comments:
Post a Comment