किसी नगर में दो दोस्त रहते थे। उनमें से दृष्टिहीन और दूसरा लंगड़ा था। चूँकि एक देखने में असमर्थ था और दूसरा चलने फिरने में ,ऐसी वजह से दोनों एक -दूसरे की सहयता से नगर में घूमते -फिरते और भिक्षा मांगते और इस तरह से उनका गुजरा चलता था। वैसे तो उन दोनों के बीच गहरी मित्रता थी ,पर कभी-कभार उनमें विवाद हो जाता था। हालाँकि दोनों को ही एक -दूसरे की जरूरत थी , ऐसी वजह से वे जल्द ही अपना विवाद सुलझा लेते और आपस में सुलह कर लेते। एक दिन दोनों के बीच में विवाद इतना बढ़ गया को नौबत हाथापाई पर पहुंच गयी। दोनों एक दूसरे एक हाथों पिटकर असहाय अवस्था में इधर -उधर पड़े थे। उनकी यह दशा देख कर भगवान को बड़ी पीड़ा हुई। भगवान ने सोचा अगर अंधे को आँखें और लंगड़े को पैर दे दिए जाये तो ये दोनों सुखी हो जायेंगे। यह सोच कर भगवान पहले अंधे के समक्ष प्रकट हुए। भगवन को लगता था को अँधा अपने लिए आँखें मांगेगा किन्तु जैसे ही भगवन ने उससे पूछ वत्स,कोई एक वरदान मांगो,उस अंधे ने तुरंत कहा , " हे भगवन ,मैं अपने लंगड़े साथी से बहुत परेशान हूँ। आप उसे भी अँधा कर दें। " यह सुनकर आश्चर्यचकित भगवान लंगड़े अपने के पास गया। और लंगड़े से बोले वत्स ,अपने लिए कोई एक वरदान मांग लो। लंगड़े व्यक्ति ने भगवन के आगे गुहार लगाई ," भगवन , मेरी ये कामना है कि मेरे अंधे साथी को लंगड़ा कर दिया जाये। " घोर आश्चर्यचकित भगवान ने कहा, "तथा स्तु " कहा और अंतर्ध्यान हो गए। इस तरह अँधा इंसान लंगड़ा हो गया और लंगड़ा इंसान अँधा हो गया।
दोनों पहले ही दुखी थे , एक -दूसरे के लिए दुःख माँगा तो और दुखी हो गए। इसकी बाजए अगर अँधा व्यक्ति लंगड़े के लिए पैर और लंगड़ा व्यक्ति अंधे के लिए आंखें मांगता तो दोनों को दुःख सुख में बदल जाता।
दोस्तों, इस दुनिया में लोग भी इस कहानी की तरह दूसरों से घृणा ,ईर्ष्या रखकर अपना सारा जीवन जीते है। हम लोग दूसरे के सुख से दुखी है। उस से ईर्ष्या करते है और सोचते है की दूसरों का सुख हमें मिल जाये। अगर हम प्रेम और शांति के साथ रहें तो हम अपना जीवन सुख में गुजार सकते है। दोस्तों जिस दिन आप ने दूसरों के सुख में खुश रहना सीख लिया उस दिन भगवाम आपको खुशियां देना शुरू कर देगा।
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