बाटा
Bata Shoes Journey |
आपने कभी बाटा के जूतों की कीमत पर गौर किया है ? 999.99 रुपये या 1299. 99 रुपये। निन्यानवे का यह फेर बाटा ब्रांड की पहचान बन चूका है। इसका एक मनोवैज्ञानिक कारण है। हालाँकि फर्क सिर्फ एक पैसे का ही है, लेकिन 999.99 रुपये का जूता 1 ,000 रुपये के जूते से सस्ता लगता है। बाटा कंपनी एक -एक पैसे का महत्व जानती है। कम से कम इसके संस्थापक टॉमस बाटा (1876 -1932 )तो जानते ही थे। जिन्होंने गरीबी से अमीरी तक का सफर तय किया था।
टॉमस बाटा ने 18 वर्ष की उम्र में ही एक छोटे से गाँव में ही बाटा कंपनी की स्थापना की थी। उन्होंने 2 कमरे किराये पर लिए ,दो सिलाई मशीनें किस्तों पर ली ,चमड़ा और बाकि सामान उधार लिया और अपने भाई और बहिन के साथ मिलकर जूते बनाने शुरू किये। बाटा कंपनी का सितारा तब चमका ,जब प्रथम विश्व युद्ध में इसे सेना से जूतों का बड़ा आर्डर मिला। 1930 के दशक की शुरुआत में बाटा जूते -चपलों के क्षेत्र में विश्व का सबसे अच्छा निर्यातक बन गया था। "पूर्वी यूरोप में टॉमस बाटा को पूर्वी यूरोप का हेनरी फोर्ड कहा जाता था "
भारत में बाटा कंपनी ने 1931 में प्रवेश किया और इसकी फैक्ट्री पश्चिम बंगाल में जहाँ खुली, उस जगह का नाम बाटानगर हो गया। भारत में बाटा के 1 ,250 स्टोर्स है जहाँ हर साल लगभग 4. 5 करोड जूते बिकते है। बाटा ने ही भारत में आधुनिक फुटवियर की नीवं रखी थी। और आज भी भारत में जूतों का सबसे बड़ा विक्रेता है। 1932 में एक हवाई जहाज़ दुर्घटना में टॉमस बाटा की मृत्यु हो गयी ,लेकिन तब तक बाटा कंपनी 27 देशों में पहुंच चुकी थी। आज बाटा कंपनी में 40 हज़ार से अधिक कर्मचारी है और हर दिन 10 लाख ग्राहक इसके स्टोर्स पर आते है।
जब टॉमस बाटा के सौतेले भाई JAIN. A. बात कंपनी के मुखिया बने ,तो बाटा कंपनी बहुत से प्रोडक्ट बनाने लगी ,जैसे टायर, हवाई ज़हाज़ ,साइकल मशीनें आदि। टॉमस बाटा ने अमरीका की एक शू असेम्बली लाइन में छह महीने तक मजदुर बनकर काम किया। इन्होने दिखा दिया की अगर इरादों में दम हो तो आपको गरीबी नहीं हरा सकती।
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