सच्चा उत्तराधिकारी |
संत एकनाथ को अपने उत्तराधिकारी की तलाश थी। इसके लिए उन्होंने अपने शिष्यों की परीक्षा लेने का निश्चय किया।उन्होंने उन्होंने अपने सभी शिष्यों को एक दीवार बनाने का आदेश दिया। सभी शिष्य इस काम में जुट गए। दीवार बन कर तैयार भी हो गयी लेकिन तभी एकनाथ ने उस दीवार को तोड़ने का आदेश दिया। दीवार तोड़ दी गई। उन्होंने फिर से दीवार बनाने को कहा। दीवार फिर बनने लगी। एकनाथ ने उसे फिर तुड़वा दिया।
दीवार ज्यों ही तैयार होती , एकनाथ उसे तोड़ने को कहते। यह सिलसला काफी दिनों तक चलता रहा। धीरे -धीरे उनके सभी शिष्य ऊब गए और इस काम से किनारा करने लगे मगर एक शिष्य चित्रभानु पूरी लगन और एकाग्रता के साथ अपने काम में जुटा रहा। बार -बार तोड़े जाने के बावजूद दीवार बनाने के काम से वह नहीं हटा और न ही उसके अंदर थोड़ी भी झुंझलाहट हुई। एक दिन एकनाथ उसके पास गए और बोले ,तुम्हारे सभी मित्र काम छोड़कर चले गए परन्तु तुम अभी भी डटे हुए हो , ऐसा क्यों ?"
चित्रभानु हाथ जोड़ कर बोला , "मैं अपने गुरु आज्ञा से कैसे पीछे हट सकता हूँ। मैं तब तक इस कार्य को करता रहूँगा जब तक की आप मना न कर दें। "एकनाथ बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने चित्रभानु को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हुए सभी शिष्यों से कहा। " संसार में अधिकतर लोग बड़े -बड़े सपने देखते और ऊँचे से ऊँचे पद पर पहुंचना चाहते है। मगर इसके लिए उस लायक होना भी जरूरी है। लोग सपने तो रखते है पर उस लायक बनने का प्रयास नहीं करते है या थोड़ा बहुत प्रयास करके पीछे हट जाते है। किसी लक्ष्य को पाने के लिए मात्र इच्छा और परिश्रम ही नहीं दृढ़ता भी जरूरी है। और जिस व्यक्ति में दृढ़ता होती है वो व्यक्ति किसी भी लक्ष्य को पा सकता है।
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