Monday 12 June 2017

// // Leave a Comment

hindi Stories- शिक्षाप्रद कहानी- राजा का अभिमान


The pride King
The pride King


एक राजा को उसके कुलगुरु समय -समय पर नीति और ज्ञान की बातें समझाते रहते थे। युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद एक बार राजा  गौरव व अभिमान से भर कर कुलगुरु से कहा , " गुरुदेव आपकी अनुकंपा से मैं अब चक्रवर्ती सम्राट हो गया हूँ। अब मैं हज़ारों -लाखों लोगों का रक्षक और प्रजापालक हूँ। मेरे कन्धों पर उन सबकी जिम्मेदारी है। "  कुलगुरु ने अनुमान लगा लिया की शायद मेरे यजमान को राजा होने का अभिमान हो गया है। यह अभिमान उसकी संप्रभुता को हानि पहुंचा सकता है। इस अभिमान को तोड़ने के लिए कुलगुरु ने एक उपाय सोचा।
शाम को राजा के साथ घूमने गए तभी कुलगुरु ने अचानक राजा को एक बड़ा -सा पत्थर दिखा कर कहा , "वत्स ! जरा इस पत्थर को तोड़कर देखो। " आज्ञाकारी राजा ने अपने अपने बल से वह पत्थर तोड़ डाला लेकिन यह क्या , पत्थर के बीच में बैठे एक जीवित मेंढक को एक पतंगा मुँह में दबाये देख कर राजा दंग रह गया। कुलगुरु ने राजा से पूछा , " पत्थर के बीच बैठे इस मेंढक को कौन हवा -पानी और खुराक दे रहा है ?
इसका पालन -पोषण कौन है ? कहीं इसके पालन -पोषण की जिम्मेदारी भी तुम्हारे कन्धों पर तो नहीं आ पड़ी है ?" राजा को अपने कुलगुरु के प्रश्न का आशय समझ में आ गया। वह इस घटना  पानी -पानी हो कर कुलगुरु के आगे  नमस्तक हो गया। तब कुलगुरु ने कहा , " चाहे वह तुम्हारे राज्य की प्रजा हो या दूसरे प्राणी ,पालक तो एक ही है -परमपिता परमात्मा। हम -तुम भी उसकी प्रजा है। उसी की कृपा से हमें अन्न और जल मिलता है। राजा के रूप में तुम उसी के कार्यो को अंजाम देते हो। हम -तुम माध्यम है ,हमारे अंदर पालनकर्ता होने का अभिमान कभी नहीं  आना चाहिए। 
  
 इन्हें भी पढ़ें :-

 
ऐसे और भी अच्छे- अच्छे आर्टिकल और कहानियां पढ़ने के लिए मेरे ब्लॉग
https://successmantralife.blogspot.in/को LIKE और SHARE जरूर करें दोस्तों.

0 comments:

Post a Comment